क्या आप फ़ैसले ले लेकर थक गए?

क्या आप फ़ैसले ले लेकर थक गए?

डिसीजन फ़ैटीग (अहम की कमी, मानसिक थकावट) एक जाना माना मनोविज्ञान शब्द है जो एक ऐसी स्थिति को दर्शाता है जिसमें ज्ञान से जुड़ी क्षमता कम हो जाती है। इसकी खोज सामाजिक मनोवैज्ञानिक Roy F. Baumeister ने की थी। अध्ययनों के अनुसार, यह स्थिति तब होती है जब किसी व्यक्ति को पूरे दिन भर में बहुत सारे फ़ैसले लेने या बहुत सारे विकल्पों में से चुनने के लिए मजबूर किया जाता है।

ये कोई बहुत अच्छी चीज़ नहीं है। क्योंकि ये हमें कम प्रोडक्टिव बनाती है। आप एक दिन में जितने ज़्यादा फ़ैसले लेंगे, हर अगला फ़ैसला उतना ही बुरा होगा। न केवल ज़िम्मेदारी और लीडरशिप के पदों पर बैठे लोग इस स्थिति से प्रभावित होते हैं, बल्कि बच्चों के माता-पिता और शिक्षक आदि भी इस स्थिति से प्रभावित होते हैं। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि ये फैसले मुश्किल हैं या आसान, चाहे ये वैश्विक मुद्दों से जुड़े हों या घरेलू, समस्या इनकी संख्या है।

पहले, मनोवैज्ञानिकों ने केवल सुबह में ही महत्वपूर्ण फैसले लेने का सुझाव दिया था - तब फैसला तर्कसंगत होगा, इसके उलट शाम में होता है जब भावनाएं पहले से ही जमा हो रखी होती हैं। यह बिल्कुल सही साबित नहीं हुआ, क्योंकि कई लोगों की जैविक क्रिया दिन के दूसरे पहर में होती है। इसका मतलब ये नहीं हैं कि मुश्किल चीज़ के सही फ़ैसले लेने के जब आपमें आपकी उत्पादकता अपनी चरम पर हो उस वक्त फैसले कर लिए जाएं और किए जाने वाले महत्वपूर्ण फैसलों को शाम से सुबह के लिए टाल दिया जाए-और इसका उल्टा। आपको ऐसा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है! लेकिन बहुत सारे छोटे-छोटे फैसलों से खुद को मुक्त करने, बिना रुके किए गए फैसलों की संख्या को घटाने और आराम करने से किसी को दिक्कत नहीं होगी, यह एक उत्पादक और तर्कसंगत तरीका है।

उदाहरण के लिए, कई राजनेताओं को अचानक पहने जाने वाले कपड़ों की अपनी पसंद को 2-3 विकल्पों तक सीमित करने या इन फैसलों को विशेष रूप से काम पर रखे गए लोगों को सौंपने के लिए जाना जाता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति Barack Obama ने एक साक्षात्कार में माना कि वह केवल ग्रे और नीले रंग की शर्ट पहनते हैं ताकि एक दिन में बहुत ज़्यादा फैसले न ले पड़ें, और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि उन्हें अन्य रंग पसंद नहीं हैं। और कोर्ट के जज लंच या आराम करने के बाद अधिक सकारात्मक फैसले लेते हैं। यह बहुत साफ़ है: जब आप पहले से ही थके हुए होते हैं, तो आप गलती करने से डरते हैं और कोई आसान रास्ता खोजते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी कोर्ट के जज हैं तो किसी मामले पर पुनर्विचार करने से इंकार कर देते हैं। या आप फैसले लेने से बिल्कुल बचना शुरू कर देते हैं, चीज़ों को टालना शुरू कर देते हैं (फैसलों और कार्यों को अंतिम क्षण तक टाल देते हैं, अन्य चीजों पर ध्यान देते हैं)।

इस पैटर्न को आपने अपने जीवन में भी महसूस किया होगा। जब आपको बहुत सारे आइटम वाले मेनू में से चुनना होता है, तो आप वही चुनते हैं जिसे आप सबसे अच्छी तरह जानते थे, तब भी जब आप नई चीज़ों को ट्राई करने के लिए तैयार थे। और अगर उस ही मेनू में 6-7 आइटम रखे जाते हैं - संभावना है कि आप एक नई चीज़ ट्राई करने का फैसला लें।

महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में शामिल निवेशक और सहभागी भी कई फैसले लेते हैं जो उनके जीवन को प्रभावित करते हैं। आप सबसे प्रभावी फैसला कैसे लेते हैं? बहुत आसान है! यहां बताया गया है कि इससे आपको क्या मदद मिलेगी:

• जो चीज़ समय से पहले तय की जा सकती है उसे समय से पहले तय कर लें। आज आप क्या खाएंगे, आप किस समय लंच करेंगे, और किस समय सोएंगे। इस तरह आपकी दिनचर्या कम हो जाएगी, आपको बस इन मुश्किल सवालों के जवाब पहले पता चल जाएंगे।
•हर फैसले के बीच में 10 मिनिट का ब्रेक लें। उदाहरण के लिए, अगर आपको प्रोजेक्ट का फैसला लेना हो और एक कॉफ़ी मेकर चुनना हो, पहले प्रोजेक्ट के काम से निपटें, 10 मिनट का आराम लें और फिर ऑफ़रों को देखने के लिए आगे बढ़ें। इस तरह आपको सबसे पहले दिखी और सस्ती चीज़ चुनने के बजाय वो चुनने का मौका मिलेगा जो असल में आपको चाहिए।
• महत्त्व के अनुसार फैसलों को बांटे। सबसे मुश्किल चीज़ों को पहले हल करें, और उसके बाद आसान को।
• अपने फैसलों की सूची को छोटा करें। अपने आप से पूछें: क्या आज इस चीज़ पर फैसला लेना ज़रूरी है? इस तरह आपको पता चलेगा, कि बहुत सारे फ़ैसले असल में आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। उदाहरण के लिए, यह बदलाव हो सकता है, कि आपको इस बात की परवाह न हो कि आपको किस रंग की शर्ट पहननी है, और ये बात भी पहले से निश्चित हो जाएगी।
• खुद की प्रशंसा करें! आपके लिए गए हर अच्छे फैसले के लिए खुद की तारीफ़ करें।

बस ये ही करना है। अगर आप थके हुए है और कुछ हल करना नहीं चाहते तो आपको अपनी इच्छाशक्ति के लिए खुद की या दुसरो की आलोचना नहीं करनी चाहिए। Roy F. Baumeister और अन्य विशेषज्ञों ने पहले से ही से साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति एक प्राकृतिक संसाधन है जिसके निरंतर इस्तेमाल से ये खत्म हो सकती है। अन्य संसाधनों की तरह इसकी भी दोबारा पूर्ति की जानी चाहिए।

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